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लेखनी प्रतियोगिता -05-Dec-2022 इच्छाऐं

इस मन में रोज उगती हैं 
इच्छाओं की अनंत लताऐं 
कुछ घनीभूत होकर फैलती हैं
और संपूर्ण व्यक्तित्व को लील जाती हैं 
कुछ इच्छाओं को खाद पानी हासिल नहीं होता 
और वे बीच रास्ते में ही दम तोड़ जाती हैं 
फिर कोई नई इच्छा कुलबुलाने लगती है 
और हम इच्छाओं के मकड़जाल में फंस जाते हैं 
इन इच्छाओं में अनेक फूल आ जाते हैं 
तब इच्छाओं का समुद्र बनता जाता है 
सुनामी सी आने लगती है 
सब कुछ तहस नहस हो जाता है 
इच्छाओं को उगने से रोकना होगा 
दृढ निश्चय के अस्त्र से काटना होगा 
ये लक्ष्य से भटकाती हैं 
इन्हें ध्यान योग से काबू में रखना होगा 
सब बुराइयों के मूल में यही हैं 
इच्छाऐं, अधूरी इच्छाऐं, अनंत इच्छाऐं । 

श्री हरि 
5.12.22 


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5 Comments

बहुत ही उम्दा और दार्शनिक भाव लिए हुयी कविता

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Punam verma

06-Dec-2022 07:33 AM

Very nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

06-Dec-2022 10:12 AM

धन्यवाद जी

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Gunjan Kamal

05-Dec-2022 08:33 AM

बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

06-Dec-2022 10:12 AM

धन्यवाद मैम

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